भीलों का इतिहास और उत्पत्ति- bhil history - भारत के मुल निवासी

शनिवार, 20 फ़रवरी 2021

भीलों का इतिहास और उत्पत्ति- bhil history

भील का अर्थ 

 किरात का अर्थ किरात प्रदेश ( नेपाल या तिब्बत ) के निवासी भील बताया गयाहै , यहाँ पर भी किराति शब्द का अर्थ शबरी अथात् भीलनी बताते हुए गंगा व दुर्गाको किराति कहा गया है और " किरी " का अर्थ " गिरि " अर्था त्पर्वत बताया गया है ।
 एक जंगली शीतल प्रिन्टर्स , फिल्म कॉलोनी जयपुर द्वारा मुदित व पंचशील प्रकाशन , फिल्म कॉलोनी , जयपुर द्वारा प्रकाशित " राजस्थानी - हिन्दी शब्दकोष " प्रथम खण्ड के पृ.सं. 239 पर किरात का अर्थए जाति भील बताया गया है और लेखक बदरी प्रसाद सांकेरिया ने पृ.सं. 670 पर " नाग " का अर्थ एक प्राचीन जाति और पर्वत बताया है ।

 राजस्थानी शोध संस्थान , चौपासनी जोधपुर द्वारा प्रकाशित व साधना प्रेस द्वारा मुदित " राजस्थानी सबद कोस " प्रथम खण्डके पृ.सं. 496 पर लेख सीताराम लालस ने किरात का अर्थ - एक प्राचीन जंगली जाति भील बताया है और महादेव शिव को किरातपत व किरातपति कहा है व किरातिनि ( किराति ) का अर्थ किरात जाति की स्त्री व दुर्गा को कहा है । लालस सर ने भी किरिट व गिरिट समानार्थी शब्द बताएहैं । गीता प्रेस गोरखपुर द्वारा प्रकाशित " संक्षिप्त श्री मद्देवी भागवत " पुराण के पृ.सं. 954 पर देवी पार्वती को स्पष्ट शब्दों में किरातिनि कहा गयाहै ।

 प्रसिद्ध इतिहासकार डॉ.भण्डारकर भीशबर , गुह , किरात आदि को भील प्रजाति का मानते हैं । महाकवि महर्षि भारवी द्वारा रचित ग्रन्थ " किरातार्जुनीय " में शिव को किरात बताया गयाहै । National Council of Educational Research and Training द्वारा प्रकाशित व संकटा प्रसाद उपाध्याय द्वारा लिखित " संक्षिप्त महाभारत " के पृ.सं .50 से 53 तक में अर्जुन से युद्ध करते हुए शिव को किरात कहा गया है । इसी कथा के विस्तार में गीता प्रेस गोरखपुर द्वारा प्रकाशित " शिवपुराण " विशिष्ट संस्करण के पृ.सं .465 से 476 पर कथा में गणेश व उनके पिता शिव को स्पष्ट शब्दों में भील , भिल्ल राज व किरात कहा गयाहै।अतः सभी उदाहरणों से किरात शब्द का अर्थ प्राचीन नाग वंशी जंगली जाति भील होता है ।

 कैलाश मित्तल अनुबुक्स शिवाजी रोड़ मेरठ द्वारा प्रकाशित व हेमन्त , निष्काम प्रेस मेरठ द्वारा मुदित " भारत की प्रमुख जातियों का कोष " प्रथम संस्करण 1987 में लेखक अरूणने पृ.सं. 92 पर किरातों का उल्लेख करते हुए लिखा है कि किरात प्रजाति दो भागों में बँटी है , एक चीनी किरात ( मंगोलीय प्रजाति ) और दूसरी भोट किरात ( भारतीय किरात प्रजाति ) है । ये तिब्बत तथा हिमालय में रहते हैं । भुटान का नाम इन्हीं परहै।भारतीय कहानियों का " भूत " शब्द भी 


 भील शब्द की उत्पति 

संस्कृत - हिन्दी - अंग्रेजी शब्द कोष " केपृ.सं .328 पर लिखा है कि निषादः- पु . ( नि + सद् ) हरिवंश पुराण ( V ) के अनुसार निषादों कीउत्पति " निषीद " से हुई है और निषीद से ही उत्पन्न हुए है - तुषार , तुम्बर , गोंड , कोल एवं अन्य जातियाँ जो विन्धय के आस - पास रहती भीलों के इतिहासकार परम आदरणीय श्रीदेवीलाल जी द्वारा लिखित व नव प्रभा ऑफसेट द्वारा मुद्रित पुस्तक " भारत के मूल आदिम्मान व भील " केपृ.सं .20 पर लिखाहै किजब भीलराजा वेण की जंधा का मंथन किया गया तो उससे एक पुरूष उत्पन्न हुआ।उसने जब पूछा कि " मैं क्या करूँ ? " तो ऋषियों ने कहा " निषीद " अर्थात् " बैठ " अतः वह बैठ गया और वह पुरूष " निषाद " कहलाया , उनके वंशज विन्धाचल वासी कहलाए ।  

निषाद शब्द की उत्पति इस प्रकार है

निषाद शब्द निषीद ( निषद् ) से बना है , जिसका शाब्दिक अर्थ व्याकरणानुसार इस प्रकार निषद्  नि + सद् " नि " उपसर्गहै , जिसका अर्थ " विशेष " होता है और " सद् " धातु है , जिसका अर्थ " बैठना " होता है।इस प्रकार निषद्का अर्थ
 विशेष रूप से बैठना होता है और विशेष ( सन्यवस्थित ) रूप से बैठने के कारण ही प्रारम्भिक भारतीय लोगों को निषाद कहा गया है । यही गुण नाग में होने के कारण नाग और निषाद दोनों समानार्थी माने गए हैं । " सद् " धातु से कई उपसर्ग जुड़कर अनेको शब्द बने है , जैसे 1.परिषद् - परि । सद् यहाँ " परि " का अर्थ " चारों ओर " और " सद् " का अर्थ " बैठना " होने के कारण चारों ओर बैठ सकने वाले प्रांगण को " परिषद् " कहाजाता है । 2.गिरिषद् - गिरि + सद् " गिरि " का अर्थ " पर्वत " और " सद " का अर्थ " बैठना " होने के कारण पहाड़ पर बैठने वाले सिव ( शिव ) को गिरिषभी कहा जाताहै । कुछ बुद्धिजीवि लोग निषाद शब्द की उत्पति " निषिद्ध " शब्द से मानकर निषाद का अर्थ " निम्न " निकाल लेते है , जो किगलत है । निषिद्ध शब्द निषष् से बना है , जिसका शाब्दिक अर्थ व्याकरणानुसार करने पर अर्थ इस प्रकार है निष - नि सम्
 यहाँ " नि " का अर्थ " विशेष " और " सध् " का अर्थ " त्याग " होने के कारण विशेष रूप से यात्याग देने को निषिद्ध कहाजाता सद्औरसध्में अन्तर " संस्कृत - हिन्दी - अंग्रेजी शब्दकोष " के पृ.सं. 78 पर " सद् " का अर्थ बैठना व रहना बताया गया है , और पृ.सं .79 पर " सध् " का अर्थ त्याग या प्रतिरोध बताया गया है । इस प्रकार निषीद और निषिद्ध के अर्थ अलग - अलग होते है।बदरी प्रसाद सांकरिया द्वारा लिखित व शीतल प्रिन्टर्स जयपुर द्वारा मुदित " राजस्थानी - हिन्दीशब्दकोष " के पृ.सं. 682 ( प्रथम खण्ड ) पर निखाद अर्थात् निषाद का अर्थ एक प्राचीन जाति भील स्पष्ट शब्दों में बताया गया है । इसी पेज पर साँकरिया सर ने संगीत के सातों सुरों में सबसे ऊपर के सुर " नी " की उत्पति निषाद से ही बताई है । " पाथेयकण " 16 अप्रेल ( संयुक्तांक 2010 ) केप.सं .18 पर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक श्रीगुरूजीने 1963 की रामनवमी के अवसर पर और 5 दिसम्बर 1970 को महाराष्ट्र के पंढरपुर में अपने उद्बोधन में पांच परमेश्वर की परिभाषा बताते हुए . कहा है कि हजारों वर्ष पूर्व लिखे गए प्राचीन ग्रन्थों के पठन से यह स्पष्ट होताहै कि हमारी व्यवस्था ग्राम पंचायत के आगे बढ़ती है
 फैसला मजूर किया पंचायत के पाँच सदस्यों में एक ब्राह्मण , एक क्षत्रिय , एक वैश्य , एक शुद के अलावा एक निषाद ( भीलराज ) होता था तभी पंचायत का जाता था । इसमें निषाद ( आदिवासी ) की आवश्यकता पर जोर दिया जाता था । इन पाँचों को मिलाकर " पंच - परमेश्वर " कहा जाता था अर्थात् ईश्वर का विराट रूप कहा जाताथा । AAJLJ -अरूण " भारत की प्रमुख जातियों का कोष " के पृ.सं .77 पर लेखक ने लिखा है कि- भारतीय धरती के आदि स्वामी निषाद हैं । हमारी भाषाओं की मूल संज्ञाएँ , भारतीय कृषि के मूल तरीके और हमारे मनके आदिम्सस्कार सब इन की देन है । विश्व में सबसे पहले गंगा की घाटी में धान की खेती इन्होंने ही की थी और भैंस को पालतु भी इन्होंने ही बनाया था।जड़ी - बुटियों को और फलों को पहचाना था तथा नाम दिया था।हो सकता है आज के भारतीयों में अवतारवाद की कल्पना भी निषादों से ही आई हो । लेखक ने पृष्ठ सं . 53 पर गंगा शब्द भी निषाद बोली का मानाहै । ऋग्वेद के प्रसिद्ध भाष्यकार महीधराचार्य भी निषादों को भील मानते हैं , दोनों को समानार्थी मानते हुए लिखते है " निषाद नाम भिल्ल " यहीं शब्द पुस्तक का शीर्षक है । हरिवंशपुराण ( v ) और " भक्त ध्रुव " नामक पुस्तक के 

क्या निशाद और भील एक है 

 एकलव्य " नामक पाठ में एकलव्य को निषाद बालक कहा गया है और कक्षा छः की हिन्दी विषय की पाठ्य पुस्तक संस्करण 2009 के पाठ " आत्म - विश्वास " एकलव्य को स्पष्ट शब्दों में भील बालक कहा गयाहै । गीता प्रेसगोरखपुर द्वारा प्रकाशित " संक्षिप्तमहाभारत " प्रथम खण्ड के पृ.सं .70 पर स्पष्ट शब्दों में एकलव्य ने पाण्डवों को अपना परिचय देते हुए कहा है कि " मेरा नाम एकलव्य है । मैं भीलराज हिरण्यधनुका पुत्र और दोणाचार्य का शिष्य हूँ । " इन उदाहरणों से भी स्पष्ट होता है कि निषाद और भील एक ही है । भीलों के इतिहासकार देवीलाल जी ने अपनी पुस्तक " मोम धणी भील " के " आत्म निवेदन " में लिखा है कि नृतत्व विज्ञान में प्रोटो ऑस्ट्रोलोइड रेस आदि निषाद प्रजाति को कहा जाता है । और इतिहास में दक्ष्वा कू प्रजाति कहा जाता हैं ।डॉ.सुनीति कुमार चाटुाने अपनी पुस्तक " भारतीय आर्य भाषा और हिन्दी " में लिखा है कि - भारत की प्राचीन ऑस्ट्रिक प्रजाति के लोग निषाद कहलाते थे । बादमें इनके नाम कोल और भील पड़ गए । गीता प्रेस गोरखपुर द्वारा प्रकाशित व हनुमान प्रसाद पोद्यार और चिमन लाल गोस्वामी कृत " संक्षिप्त श्री मद्देवी भागवत " के तीसरे स्कन्ध पृ.सं .141 व 142 पर एक ही कथा में एक ही व्यक्ति को
 जंगली आदमी , शिकारी , व्याध , धनुर्धारी , किरात और निषाद कहकर पुकारा गया है।ये सभी भील के समानार्थी शब्द है । बड़े गर्व की बात है कि महाभारत की दादी माँ भी भीलनी ही थी , जो सत्यवती के नाम से पुराणों में बड़े ही सम्मान से जानी जाती है , जो महाराज शांतनु को विवाही गई थी । देवी भागवत पुराण के पहले स्कन्ध के पृ.सं .71 पर दादी माँ सत्यवती को निषाद - कन्या कहते हुए पुण्यवती व पुण्यमयी कहा गया गीता प्रेस गोरखपुर द्वारा प्रकाशित " संक्षिप्त महाभारत " प्रथम खण्ड - आदिपर्व पृ.सं. 52 पर शांतनु के समक्ष मील वेश में खड़े हुए उपरिचर को निषाद कहा गया है , जो सत्यवती के पिता थे , इनका पेशा नाव चलाने का बताया गया है । 1 ) डॉ . मजुमदार अपनी पुस्तक " एन एडवान्स्ड ऑफ इण्डिया " में लिखते है कि - निषाद स्पष्टतया अनार्य थे और भील  ही थे । 2 ) प्रसिद्ध विद्वान डॉ . भण्डारकर शिवजी को नियाद प्रजाति का देवता मानते है । 3 ) प्रसिद्धविद्वान डॉ.नेमीचन्द जैन ने अपनी पुस्तक " भील
 भाषा साहित्य और संस्कृति " में नाग - निषाद प्रजाति को भील प्रजाति ही माना है । 4 ) प्रसिद्ध विद्वान आर.सी. जैन , डॉ . नेमीचन्द जैन व डॉ . अम्बेडकर जैसे विद्वानों का भी मानना है कि - नाग और निषाद एक ही प्रजाति के है । ( 1,2,3,4 चारों उदाहरण - भारत के मूल आदिम् मानव भील 80 ) 4 . शबर : - " राजस्थानी - हिन्दी शब्द कोष " तृतीय खण्ड के पृ.सं. 1351 पर लेखक बदरीप्रसाद ने शबरका अर्थ भील बताते हुए लिखा है कि - श्रमणा नाम की एक शबर जाति की राम भक्त स्त्री थी जो शबरी अर्थात् भीलणी थी।और पृ.सं. 1353 पर शंबर का एक अर्थ पर्वत भी बताया है । पृ.सं. 1386 पर सबरी का अर्थ रामायण में उल्लेखित रामभक्त भीलणी , शबरी , सन करने वाली और क्षमाशील बताया है , पृ.सं .1400 पर संबर का अर्थ सुखी , भाग्यवान और बढ़िया बताया है । वामन शिव राम आप्टे द्वारा लिखित " संस्कृत - हिन्दी - अंग्रेजी शब्दकोष " के पृ.सं. 526 पर शबर का अर्थ एक पहाड़ी जाति भील , म्लेच्छभेद ( AVariety of Mlecchas ) बताते हुए शबर देश के निवासी बताया है , महा भारतानुसार शबर देश दक्षिण को कहाजाता है 

 पृ.सं .152 पर शबरी और किराति समानार्थी शब्द बताते हुए गंगा और पार्वती को किराति कहा गया है । इस प्रकार सम्पूर्ण अर्थो को मिलाकर शबर का अर्थ एक श्रेष्ठ क्षमा शील पहाड़ी सभ्य भील प्रजाति होता है । देवीलाल कृत " भारत के मूल आदिम् मानव भील " में कुछ पौराणिक भीलों का उल्लेख है , जिनमें से यहाँ दो भीलों का श्लोक सहित उल्लेख किया जा रहा है । 

1.कार्य सिध्द यैसहिक्वपिप्रयातःशबरविपः ।

 आगत्यचण्डिकायास्त्वामुपहारिकरिष्यति ।41 ॥

 विन्ध्यकेवनों में भीलराजाश्रीचण्डने श्रीदत्तकोबन्दीबना लियाथा 

। 2 तत्रतस्याययावग्रेसानुगःशबराधिपः ।

 अकस्मात् सिंह दंष्ट्राव्य कार्यास्य प्रस्थिति कवचित् ॥22 ॥ 

भीलराज सिंह दंष्ट्राने नरबलि हेतु एक ब्राह्मण को पकड़ा था किन्तु उनके विनय करने प बड़े सम्मान के साथ छोड़ दिया था । गीता प्रेस गोरखपुर द्वारा प्रकाशित " पौराणिककथाएँ "
निषाद नाम भिल्ल : 23 संस्करण 2062 प्रथम ही कहे गए है । ( संस्करणकेपृ.सं .118 परशबर और निषादएक 5 . भील : - भील शब्द की उत्पति तमिल भाषा के " बिल्ल्वरं " शब्द से हुई है।बिल्लवरं शब्द का शाब्दिक अर्थ इस प्रकार है । बिल्लवरं - बिल्ल वरं -धनुष + धारी / धारक / घणी इस प्रकार बिल्लवरं का अर्थ धनुषधारी अर्थात् धनुर्धारी हुआ । बिल्लवरं शब्द के " बिल्ल " शब्द में व्याकरणाचार्यो ने " ब " के स्थान पर उसी के समानार्थी वर्ण " म " का प्रयोग ( उल्लेख ) किया परिणाम स्वरूप " बिल्ल " शब्द का समानार्थी शब्द " भिल्ल " बना यही शब्द भील कहलाता है । आदिनाथ प्रिन्टर्स , भीलवाड़ा द्वारा प्रकाशित श्रीमहावीर भट्ट द्वारा संकलित , संवत् 2011 की पुस्तक " गौ विज्ञान अनुसंधान एवं सामान्य ज्ञान परीक्षा " के पृ.सं. 86 पर प्रश्न क्रमांक 143 पर स्पष्ट शब्दों में लिखाहै कि " भील शब्द की उत्पति " बिल्लवर " शब्दतमिल भाषा से हुईहै , जिसका अर्थ धनुर्धारीहै । " मनु प्रकाशन अजमेर द्वारा प्रकाशित व कांति लाल जैन और महावीरजैन द्वारा लिखित " लक्ष्य - पुलिस कॉस्टेबल परीक्षा " केपृ.सं.
182 पर लिखा है कि - भील राजस्थान की सबसे प्राचीन जनजाति है , और पृ.सं. 185 पर लिखा है कि- भील अपने कुल देवता टोटम् को पवित्र देवता मानते हैं । भील लोग ऋषभदेव ( कालाजी ) की केसर का पानी पीकर झूठ नहीं बोलते । " भारतकी प्रमुख जातियों का कोष " केपृ.सं .91 पर लिखा है कि - भील : -दक्षिणी - पूर्वी राजस्थान तो क्या भारत के सबसे पुराने आदिवासी हैं।ये मेवाड़ बाँसवाड़ा , डूंगरपुर , प्रतापगढ और सिरोही में अधिकतर पाए जाते हैं । इन्होंने अपने पुराने तौर तरीके नहीं छोड़े है , जंगलों में तीर - कमान लेकर घूमते हैं । प्रतियोगिता टुडे 2013 में प्रकाशित " राजस्थान सामान्य ज्ञान " " वस्तुनिष्ठ प्रश्न " शुभम प्रकाशन , जयपुर द्वारा मुदित केपृ.सं. 70 पर प्रश्न क्रमांक 5 में राजस्थान की सबसे प्राचीन जाति भील बताई गई है । परम् आदरणीय श्रीदेवीलाल जी ने अपनी पुस्तक " भारत के मूल आदिम् मानव भील " के पृ.सं. 122 पर लिखा है कि- " राजस्थान जातियों की खोज " नामक पुस्तक में श्रीरमेशचन्द्रगुणार्थी ने लिखा है कि - भील अपने अंगुठे के खून से तिलक कर नये राजा का सिंहासन पर राज्याभिषेक करते थे । दो भील एक बायां हाथ व दूसरा दायां हाथ पकड़कर ताज पहनाकर सिंहासन पर बैठाते थे , फिर इस के बाद पुरोहित

भीलो का सस्कर 

 लोग अपनी सारी रस्में चालू करते थे । " अमर सिहाभिषेक " काव्य भी इस एतिहासिक तथ्य का उल्लेख है । महाराणा प्रताप ने भी आदिवासी दुध्दे भील के हाथ का खून अपने माथे पर लगाया था । देवीलाल जी ने पृ.सं. 31 पर कुछ पौराणिक भीलों का श्लोक सहित उल्लेख किया है , उनमें से मुक्तालता और देवी माँ का यहाँ उल्लेख किया गया है नरवाहन दत्त के दरबार में एक बार निषाद राज कन्या मुक्तालता पिंजरे में तोता लेकर आई उसके साथ उसका भाई वीर प्रेम भीथा ।

 तमेकदास्थानगंतप्रतिहारोव्यजिज्ञापत ।

 देवमुक्तालतानामनिषादाविपकन्यका ।

। पन्जरस्थितमादायशुकंद्वारिबहि : स्थिताः ।

 वीरप्रमेरणानुगतामात्रादेवंदिदृक्षते ॥25 ॥

 प्रविशत्वितीराज्ञोकेप्रतिहारनिदेशतः ।

 भिल्लकन्यानृपास्थनप्रांगणम्प्रविवेश ॥

 नामानुषीय दिव्यस्त्रीकापिनूनमसाविति ।

 सर्वगायचिन्तयेस्तत्रदृष्टवातदुपममुत्तम्।।6 ।।
 साफ - साफ शब्दों में लिखा गया है कि - निषाद , धोवर और खस आदि जातियाँ म्लेच्छ जातियाँ है।इन्हें म्लेच्छ मत्स्य जीवी होने के कारण कहा गयाहै 

। ममन्धुर्बाहनणास्तस्यबलादेहमकल्मषाः 

। तत्कायान्मथ्यमानातु निपेतुर्लेच्छजातयः ।। 

मत्स्यमहापुराण के दसवें अध्याय के सातवें श्लोक में बताया गयाहै कि - जब राजा वेण के शरीर कामन्थन बलपूर्वक किया गया तो उससे कई म्लेच्छ जातियाँ प्रकट हुई।इसी पुराण के चौथे अध्याय के 54 वें श्लोक पृ.सं .15 पर महाराज दक्ष के वंशजों को म्लेच्छ कहा गया

 जनयामासधर्मात्माम्लेच्छानसर्वाननेकशः ।।

 सदृष्ट्वामनसादक्षः स्त्रियः पश्चादजीजनत ।4 ।।

 सरलार्थ- इस प्रकार धर्मात्मा दक्ष ने अपने मन से अनेकों प्रकार के सभी म्लेच्छों की सृष्टि की तत्पश्चात् स्त्रियों को उत्पन्न किया । माता पार्वती और देवी माँ गंगा धर्मात्मादक्ष की ही पुत्रियाँ थी , जिसे शब्दकोषों और देवी भागवत केपृ.सं .954 परदक्ष सुताव
निवादनाम भिल्ल : 28 किरातिनि अर्थात् मालनी साफ शब्दों में कहा गया है । पाकिस्तान में भीलो को आर भीम्लेच्छा - पडेचा - पाड़ेवाका जाता है । " भारत की प्रमुख जातियों का कोश " के पृ.सं .21 पर यजुर्वेद के मंत्र 5 से 21 में व्यवस्था के अनुसार 172 जातियों के वर्णन उल्लेख है , जिनमें क्रमांक 16 में कुछ जातियों का एक साथ उल्लेख मिलताहै क्रमांका : 111 - घेवर ( घोवर ) , 112 - दास , 113 - वन्द ( निषादपुत्र ) , 114 - मार्गर ( व्याघ ) , 115 - शोकल ( मच्छीमार ) , 116 - कैवर्त ( केवट ) , 117 - आन्द , 118 - मैनाल 119 - पर्णक ( भील ) , 120 - किराद ( किरात ) , 121 - जम्मक मनुस्मृति में भी निषाद , मछुआरा ( म्लेच्छ ) , कैवर्त , किरात , आखेटक , व्याघ एक ही माने गए है । प्रदीप शेखावत कृत , पत्रिका प्रकाशन द्वारा प्रकाशित आठवा संस्करण 2010 " महाभारत केसाक्षी के पृ.सं .10 व 11 पर
29 भील कहा गया है । सत्यवती भीलनी के पिता महाराज उपरिचर को वसुववसुराज धीवर एन.सी.ई.आर.टी. द्वारा प्रकाशित " संक्षिप्त - महाभारत " के शब्दार्थ और टिप्पणी में पृ.सं. 155 पर निषाद का अर्थ एक जाति , धीवर और मछुआरा ( म्लेच्छ ) बताया गया है । इस प्रकार निषाद , धीवर , मछुआरा , मल्लाह , म्लेच्छ , केवटव भील समानार्थी शब्द है , जो भील के ही पर्यायवाची शब्द है । 7.केवट : केवट शब्द का अर्थ " राजस्थानी - हिन्दी शब्दकोष " प्रथम्खण्ड के पृ.सं .254 पर बदरी प्रसाद साँकरिया ने नावखे ने वाला खेवट अर्थात् केवट बताया है , यहाँ पर केवट के अर्थ केवटणहार , केवट ने वाला , सुधारने वाला , पोषक आदि बताया है । इसी शब्दकोष के द्वितीय खण्ड के पृ.सं. 1053 पर केवट के अर्थ - प्रमुख ( प्रधान ) मुख्य , शूरवीर , नावखेकरपारलगानेवाला , नाविक , खेवटियो , भील और माँझी स्पष्ट शब्दों में बताए गए हैं , इसीखण्ड के पृ.सं. 1013 पर केवटकाअर्थमल्लाह भीबतायागयाहै । 8.माँझीराणा : - " राजस्थानी - हिन्दीशब्दकोष " द्वितीय खण्ड के पृ.सं . 1033 पर माँझा शब्द का अर्थ मर्यादा , सीमा , प्रतिष्ठा , विवेक , लाज शरम् , कुल वधर्म बताया गया है।और सीता राम लाल सद्वारा
निषाद नाम भिल्ल : 30 लिखित और संशोधित व श्री सुमेर प्रिंटिंग प्रेस , जोधपुर द्वारा मुदित " राजस्थानी सबद कोस " ( राजस्थानी - हिन्दी वृहद् कोश ) तृतीय खण्डकेपृ.सं .3685 पर माँझ का अर्थ राज्य और देश भी बताया गया है और पृ.सं. 3653 पर माँझी का अर्थ प्रधान , नेता , मुखिया , अगुवा , नायक , बलवान , वीर , योद्धा , मुख्य , खास , स्वामी , अधिष्ठाता , नाविक , खेवटऔरमांजीबतायागयाहै । " राजस्थानी - हिन्दी शब्दकोष " द्वितीयखण्डकेपृ.सं . 1033 पर ही " माँझी " का अर्थ माँछी , मछली पकड़ने वाली जाति , धीवर , मुखिया और भील जाति बताया गया है।और इसी शब्द कोष के पृ.सं. 1148 पर " राणा " शब्द का अर्थ राजा और भील साफ शब्दों में बताया गया है । ऐसे गुणों वाली महान प्रतिष्ठित भील जाति के लिए आदर सूचक शब्द " माँझीराणा " कहा जाता है , ऐसा उल्लेख भी इसी शब्द कोष में कियागयाहै और माँझीराणा के अन्य अर्थ भी बताए गए हैं जो सभी भील के अर्थ में ही प्रयुक्त हुए है।जैसे महाराजाओं की सेनाका अग्रणी , प्रमुख सैनिक , भील सैनिक और भील जाति आदि।इसप्रकार माँझीराणा का अर्थ माँझी राणा भीलाराजा 
अर्थात् भील राजा होता है । 9 . रावतः- " राजस्थानी हिन्दी शब्द कोष " द्वितीय खण्ड के पृ.सं. 1156 पर " रावत " का अर्थ राजा , सरदार , छोटा राजा , भील जाति , भील जाति का मनुष्य , शूरवीर आदि बताया गया है।यहीं पररावत वंश अर्थ - राजवंश बताया गया है , और रावताई का अर्थ रावतपना , राजापना , रावत की उपाधि और रावत का काम बताया गया है । रावताणी का अर्थ रावत की स्त्री और रानी  बताया गयाहै । का 10 . नायक : - " राजस्थानी हिन्दी शब्द कोष " प्रथम खण्ड केपृ.सं . 676 पर नायक शब्द का अर्थ आचार्य , पति , श्रेष्ठपुरूष , बनजारा , भील , एकजाति , शिकारी बताया है।और नायिका का अर्थ नायककी स्त्री या पत्नी बताया गयाहै । देवीलालजी द्वारा लिखित पुस्तक " भोम धणी भील " के पृ . सं .37 पर लिखा है कि - प्रसिद्ध इतिहासकार डॉ . ठाकर भाई नायक जिन्होंने " भील पुराण " लिखा है , अपनी पुस्तक " भील ए.स्टडी " में नायक को भील माना है । सन् 1987 में पी.एस.वर्मा रजिस्ट्रार जनरल ऑफइण्डियाद्वारा पुस्तक " द लिविंगम्यूजिकड़न राजस्थान में भी भील और नायक एक ही कहे गए है । 
तो दोस्तों आपको ये पोस्ट कैसा लगा कमेंट में जरुर बताये और इस ब्लॉग को sabscraib जरुर कर ले 

1 टिप्पणी:

  1. गलत प्रसारित कर रहे हो आप भील समाज ब्राह्मण समाज गुज्जर समाज बंजारा समाज थोड़ी समाज राजपूत समाज सभी में नायक मध्यकालीन भारत में प्रकाशित एक उपाधि है इसका जाति से कोई संबंध नहीं है
    और जो नायक जाति है उनके भील जाति जैसे कोई रिती रिवाज नहीं है आप गलत पोस्ट लिख रहे हो आप के खिलाफ झूठ फैलाने वह नायक समाज को बदनाम करने का केस दर्ज करवा सकता हूं
    नायक समाज भगवान श्री राम के वंशज हैं
    बिना किसी प्रमाण के आप जो मर्जी आ रहा है लिखते जा रहे हो

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