Happy birth day rajener bodh nirban - भारत के मुल निवासी

शुक्रवार, 10 मई 2019

Happy birth day rajener bodh nirban

*गर आप न आए होते !!*
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19 दिसंबर 2010 का दिन था । मैं रोजगार सहायक के पद से रिजाईन कर बी.एड. के साथ टीचर्स एग्जाम की तैयारी में मशगूल । मित्र अमित ने फोन कर बताया कि सादुलशहर से कोई राजेन्द्र कुमार जी है, सामाजिक कार्यकर्ता, आज रात आपके पास रुकेंगें । शाम को मुलाकात हुई आकर्षक व्यक्तित्व के धनी एक युवा से । बातचीत के बाद पता चला कि भाई साहब ग्रेजुएशन करते ही साहब कांशीराम जी से प्रेरित हो राजनीतिक आंदोलन से जुड़े हैं और तब से लगातार फील्ड में ही हैं । सच में, उस रात देश की सामाजिक- धार्मिक-आर्थिक व्यवस्था के बारें में जितना जाना, पढ़ाई में होशियार होने के बावजूद भी उतना स्नातक तक के पाठ्यक्रम को पढ़कर भी न जान पाया था मैं । पहली बार महसूस हुआ कि कितना एकपक्षीय कंटेंट परोसा जाता है  विद्यार्थियों को । बहुत सी धारणाएं तार-तार हो चुकी थी, बहुत से नायक खलनायक लगने लगे थे और बहुत से नये गर्वोन्नत नायक प्रकट हो गये थे । { क्रॉस चैक करने की आदत छात्र जीवन से थी ही, सो जांचते-परखते यकीन भी होता गया } । अमित भाई, भीमसैन और मैं रात तीन बजे तक उन्हें सुनते रहे । *अगली सुबह जब आंगन में खड़ी मां ने मुझे सब्जी लाने का कहा,*
 तो

भाई साहब बोल पड़े- *"कुछ मत मंगवाओ माऊ, मेरे बैग में प्याज है, आप तो बस दो रोटियां बना दीजिए ।"*
फिर ३ किमी पैदल ही पड़ौसी गांव साजन वाला एक और मीटिंग करने भाई साहब पैदल ही निकल पड़े ।

अगली मुलाकात पांच साल बाद मई 2015 में हुई, जब मैं इनके निमंत्रण पर धम्मभूमि मलोखड़ा (पलवल, हरियाणा) पहुंचा था । मेरे जैसै जिज्ञासु और तर्कशील लड़के को और क्या चाहिए था ? श्रद्धेय भंते डॉ  Karunasil Rahul जी का मार्गदर्शन और नेतृत्व यहां मिला । माध्यम बने राजेन्द्र भैया । धम्म प्रचार ही आपके जीवन का उद्देश्य बन चुका था अब तो । राजेन्द्र से नया नाम मिला निब्बान बौद्ध । आगरा स्थित धम्मभूमि  हैडक्वार्टर से देश भर में आपकी सक्रियता बढ़ती गई । श्रद्धेय भंते राहुल जी के मार्गदर्शन में धम्मभूमि गतिविधियों को राजस्थान तक लाने में सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका आपकी रही । आपकी प्रतिबद्धता, त्याग की भावना, विनम्रता, प्रबंधन, सादगी, सद व्यवहार,  और कृतज्ञता का भाव हर किसी पर अपना प्रभाव छोड़ता है । आपका यह वाक्यांश तो बेहद कर्णप्रिय है- *"शुक्रिया तथागत ! शुक्रिया उनके लिए, जिन्होंने यह उत्तम भोजन तैयार किया ।"*

अक्सर कहते हैं कि याद नहीं अंतिम बार रिश्तेदारों के यहां कब गया था । एक बार पापाजी का एक्सिडेंट हुआ, आप बाहर थे, दोस्तों को बोलकर सब इंतजाम करवाया ईलाज का और जब माताजी ने हॉस्पिटल पहुंचने की बात कही, तो इनका जवाब था-"मां ! दो-तीन दिन तो प्रोग्राम है और फिर ईलाज तो डॉक्टर करेंगें, मेरा वहां क्या काम है ?" विरले ही उदाहरण मिलेंगे, जहां पूरा परिवार धम्म प्रचार को समर्पित हो । आपके अनपढ *माताजी लगभग 60 वर्ष की उम्र में जब सफारी सूट पहनकर धम्म प्रचार को निकलते हैं/*
श्रामणेर बन चीवर में चारिका करते हैं, तो *मैं तो तय ही नहीं कर पाता कि माता-पुत्र में से कौन ज्यादा समर्पित है ?*

और भी ढेर सारी बातें -यादें जुड़ी है कि एक पुस्तक बन जाए । *राजस्थानी के युवा साहित्यकार Shiv Bodhi अक्सर कहते भी हैं कि मैं राजेन्द्र बौद्ध की जीवनी लिखूंगा ।* भाई साहब राजुराजू सारसर राज के सद्य प्रकाशित कहानी संग्रह 'जूती' की एक कहानी में तो राजेन्द्र बौद्ध नाम का एक पात्र हैं भी, जो हूबहू आपके व्यक्तित्व से मैच करता है । एक आदर्श बौद्ध कैसा होना चाहिए, यदि आपको यह जानना हैं, तो आपको राजेन्द्र बौद्ध से जरुर मिलना चाहिए ।

खैर, मीर तकी मीर का यह शे'र आप सरीखे इंसान पर ही सूट कर सकता है:-

"मत सहल हमें जानो फिरता है फ़लक बरसों,
तब ख़ाक के पर्दे से इंसान निकलते हैं ।"

आज आपका जन्मदिवस है । Special wala हैप्पी बर्थडे आपको !! आप गर न मिले होते, तो संभवतः मैं भी बहुसंख्यक पढ़े-लिखे अशिक्षितों की तरह  अज्ञानता का बोझ गर्वपूर्वक ढो रहा होता । बस यही कामना है कि आपका अपनत्व हम सबको आजीवन मिलता रहें !! पुनश्च मंगलकामनाएं !!
सदैव आपका
B.Lपारस

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