नायक जाति कि उत्पत्ति और नायक समाज का इतिहास - भारत के मुल निवासी

गुरुवार, 19 नवंबर 2020

नायक जाति कि उत्पत्ति और नायक समाज का इतिहास

जब तक अपने इतिहास के बारे में खोज नहीं करेंगे तब तक अपना मूल इतिहास  को दुनिया के सामने नहीं रख पाएंगे और जो कोम अपना इतिहास नहीं जानती का इतिहास बना भी नहीं सकती नायक कोई जाति नहीं है बल्कि एक उपाधि है एक जिम्मेदारी का अहसास है भील कबीले के मुख्य सरदार नायक या नेता कहलाता था यह सरदार अपने सर पर नाग का टोटल धारण करते थे टोटल यानी प्रतीक चिन्ह आगे कालांतर में जब यह कबीले बहुत बड़े होकर बिखरते गए इन्हीं कबीलो के सरदार मुखिया या नेता भी अलग हो गया और अपने आप को नायक का संबोधन शुरू कर दिया किंतु अपनी मूल धरोहर से नहीं टूटे मूल्य और यानी प्रकृति से जुड़े रहे किंतु आज के समय में यह नायक शब्द एक जाति बनकर उभरा है प्राचीन तक से कि अगर हम बात करें तो जो हड़प्पा सभ्यता मोहनजोदड़ो जैसे स्थानों से मिले सबूतों के आधार पर हम कह सकते हैं कि नायक अन्याय और पाखंडवाद के हमेशा से विरोधी रहा है तो नायक कबीले उन्होंने प्रकृति की पूजा किया जैसे पेड़ को पूजना उन्हें पता था कि पेड़ हमारा जीवन दाता है जो हमें श्वाश लेते हैं वह हमें पेड़ों से ही मिलता है प्रकृति की पूजा करना आदिकाल के नायक कमीनों से ही सीखने को मिला है

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