Bhima nayak history in Hindi - भारत के मुल निवासी

रविवार, 6 जून 2021

Bhima nayak history in Hindi

क्रांतिवीर भीमा नायक क्रांतिवीर भीमा नायक का जन्म मध्यप्रदेश के बडवानी जिले के मुडन गाँव में हुआ | बडवानी - सिलावद रास्ते पर ढाबा वावडी गाँव के पहाडपर भीमा नायक की गढी है ।

भीमा नायक का इतिहास





 सन १८१८ में मराठों को हराकर खान्देश और पश्चिम निमाड अंग्रेजों ने अपने कब्जे में लिया था । राजा महाराजा अंग्रेजों के डर के कारण गुलाम हो गये थे । लेकीन आदिवासी खेडूत , किसानों ने गुलामी का स्विकार नही किया | 
बल्की ब्रिटीश सत्ता के खिलाफ विद्रोह छेडा इसलिए अंग्रेज हरकत में आये । शेठ , साहुकार , जमिनदारोंने छल कपट , शोषण , अन्याय एवं अत्याचार शुरु किया इस से लोग भडके और विद्रोह किया इसका नेतृत्व भीमा नायक ने किया । इस विद्रोह को काबू में रखने के लिए अंग्रेजो ने ग्राम पलसूद , सिलावद , सेंधवाघाट , चिखल्दा और बडवानी में पुलिस चौकी बढा दी । सन १८५७ भिमा नायक की शक्तीशाली तुकडी ने तीरकमान से संघर्ष कर के अंग्रेजों को नाको दम किया । सेंधवा घाट संघर्ष का प्रमुख स्थल बना | 
३००० लोगों के साथ भीमा नायक , खाज्या नाईक , मोवासीया , दौलतसिंग , कालुबाबा इन वीरों ने लढाई लढी । इसी दौरान तात्या टोपे निमाड क्षेत्र में आये थे ।
 अंग्रेज अफसर कर्नल बिस्टन तात्या टोपे के पिछे लगे हुओथे इसलिये भीमा नायक ने तात्या टोपे को आश्रय दिया । भीमा के २०० साथियों ने तात्या टोपे को नर्मदा नदी पार करवाकर बचाया । निमाड परगणा , खान्देश में भीमा की दहशत फैल गयी और अंग्रेजो ७१ गावों को नष्ट कर दिये ।
 भीमा अंग्रेजो के हाथो नही आ रहा था । इसलिये उसे आत्मसमरपण करने का न्योता दिया गया । लेकीन बहादुर भीमा ने अंग्रेज का इस प्रस्ताव को ठुकराया । अंग्रेज भीमा को खत्म करना चाहती थी इसलिये भीमा को पकडने की बडा इनाम भी जाहीर की । इसी बिच भीमा , खाज्या और अन्य आदिवासी प्रमुखोंने १५०० साथियों के साथ शिरपूर के समिप गौरी नदी के तटपर हमला किया और अंग्रेजों के २०० सैनिकों को मौत के घाट उतारा । इस दौरान २५ आदिवासी क्रांतीवीर शहीद हो गये । लेकीन भीमा और खाज्या अंग्रेजो के हाथो नही आये । १० साल तक भीमा ने संघर्ष किया । बडवानी के राजपूत राजाने भीमा के विरुध्द शिकायत दर्ज की । आखिर भीमा छल कपट के शिकार बने और पकडे गये । इंदौर जेल में मुकदमा चला उन्हें उम्र कैद की सजा हुई और अंडमान - निकोबार के कालापाणी भेजा गया । वहाँ ९ साल तक जेल में रहने बाद २ ९ डिसंबर १८७६ को भीमा नायक शहीद हो गये । इस तरह भीमा नायक मानवता के आझादी के लिए लढनेवाले आद्य क्रांतिकारी थे । उनकी स्मृती हमारे हृदयों मे सदा अमर है

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