क्रान्तिविर भगोजी नाईक का इतिहास - भारत के मुल निवासी

बुधवार, 11 नवंबर 2020

क्रान्तिविर भगोजी नाईक का इतिहास

आदिवासी भारतीय स्वतंत्रता में क्रांति की मशाल है, आदिवासी क्रांतिकारी और विरंगन जिन्होंने भारत को आजादी दिलाने के लिए सबसे ज्यादा खून बहाया, लेकिन देश को आज़ादी मिलने पर इन क्रांतिकारियों का इतिहास खत्म हो जाता है ।
इस तरह झूठे इतिहासकारों को नजरों से परे रखा जाता है
आदिवासी योद्धा वीर भगोजी नायक उनका जन्म सिन्नार तालुका से 25 किमी दूर नंदुरशिंगोट गांव में स्वतंत्रता से पहले हुआ था । अंग्रेजों ने पूरे देश पर कब्जा कर लिया था । अंग्रेजों के दास बनकर भारत के सारे राजा, महाराज अंग्रेजों के आदेशानुसार अपना राज चला रहे थे, लेकिन इस देश में एक समाज था, जंगल में रहकर, , प्रकृति को भगवान बना रहा था, अंग्रेजों की गुलामी को कभी स्वीकार नहीं किया और अंत तक लड़ते रहे । आदिवासी विद्रोहियों के देश में कई गिरोह थे और वे ब्रिटिश सरकार से अपील कर रहे थे । आदिवासी विद्रोहियों की रक्षा के लिए इगराज सेना में आदिवासी के युवा बच्चों की भर्ती करने लगे । भगोजी को भी सेना में भर्ती कराया गया, लेकिन ब्रिटिश अधिकारी भगोजी पर लगातार शक करते रहे, आदिवासी विद्रोहियों की मदद करने का आरोप, अंग्रेजों के साथ ईमानदार होकर हम अपने देशवासियों पर हथियार ले जा रहे थे, अंत में हर देश का लक्ष्य प्राप्त करना था आजादी, यही लक्ष्य था भगोजी नायक  उरी इस्तेमाल करके विद्रोह में कूद गया,
ब्रिटिश सरकार ने हाल ही में 1848 में राघोजी का विद्रोह तोड़ दिया था, जिसे सालो ने रिहा किया था या नासिक, पुणे, अहमदनगर, ठाणे में चलाया था ।
साथ ही ब्रिटिश पल्तानी में बने भगोजी ने बडकरी में शामिल होकर 50 भील और महादेव कोली विद्रोहियों को साथ लेकर फिर नासिक, नगर जिलों, नाशिक, पुणे, नगर रोड में आदिवासी विद्रोहियों को भगोजी ने कब्ज़ा कर लिया मिलिंग का रास्ता अवरुद्ध करके अंग्रेजों को परेशान किया, नासिक, पेठ, हरसुल, अंग्रेजों को ज्वाला में नमन,
भगोजी की बढ़ती हुई कार्रवाई को रोकने के लिए के । हेनरी को एक सेना के साथ भगोजी के पास भेजा गया, उस समय भगोजी नाइक चस्खिंडी में थे, अंग्रेज और भगोजी नाइक की लड़ाई हुई, जहां हेनरी भगोजी को गोली मारकर भगोजी को मार दी गई,
हर जगह हवाओं की तरह फैली खबर, आदिवासी विद्रोह का उत्साह बढ़ रहा था, लेकिन अंग्रेजों ने भगोजी बनाए रखने के लिए फितूरी, अवार्ड्स जैसे सभी चालें बजाने लगे । उन्होंने इसमें सफलता देखी, अंग्रेजों ने अभी 1858 की वृद्धि तोड़ी थी । भगोजी अब 57-58 साल के हो गए, भाई महिपत और बेटा विद्रोह में काम आए, फिर भी नाइक की लड़ाई चल रही थी,
खबर सच थी, भगोजी और उनके सहयोगियों को गोदावरी तीरी सांगवी के द्वीप पर रात भर ब्रिटिश सेना ने घेर लिया, दिन बीत गया, दोनों तरफ गोलीबारी शुरू, भगोजी का साथी गिर रहा था ।
सुबह उगने वाला सूरज डूबने वाला था,
लेकिन निकर से लड़ने वाले भगोजी की ताकत देख रहे थे,
एक गोली भी भगोजी के नाम पर लिखी थी,
उसने उसे नाराज़ कर दिया था ।
द्वीप पर शूटिंग अब शांत थी,
आदिवासी का शेर गोदातिरी धरतिर्थी पर गिरा था ।
तो दिवस होता ११नवम्बर १८५९
ऐसी बहादुर आदिवासी विरासत को विनम्र अभिवादन......

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