Nayak Samaj ka itihas - भारत के मुल निवासी

शनिवार, 23 जनवरी 2021

Nayak Samaj ka itihas

Nayak Samaj ka itihas....

नायक समाज का इतिहास / उत्पतिकुछ लेखक को ने पुराणो एवं प्राचीन ग्रंथों के आधार पर लिखा है, की पूर्ण ब्रह्म परमात्मा के नाभि कमल से ब्रह्मा, ब्रह्मा सा मारीचि, मारीचि से कश्यप, कश्यप से सूर्य, सूर्य से मनु, मनु सेदेवस्त मनु, मनु से इष्वक्षु, नर्ग, युरस्त, ययात्री, नरियंत, अरिस्त, करूप,वृष, नभाग तथा एक पुत्री उत्पन्न हुई।मनु के पुत्र नभाग से सौं पुत्र हुए , जिनमे नायक और अम्ब्रीश दो पुत्र धर्मात्मा एवं वीर थे। 

नभाग पुत्र अम्ब्रीश अयोध्या के आसान पर आसीन हुए तथा नायक को दक्षिण का काँचीपुरम राज्य दिया गया। यह सूर्यवंशी थे, जिसमे प्रसिद्ध राजा रघु एवम मर्यादा पुरूषोत्तम राम हुए अतः यह रघुवंशी कहलाए।

इस कारण नायक स्वयं को रघुवंशी राजा रघु के वंसज मानते हैं अतः नायक रघुवंशी भी कहलाते हैं एवंमरघुनाथ जी (मर्यादा पुरूषोत्तम राम) को अराधय देव मानते हैं।

“नायक ” शब्द का अर्थ मुखिया, स्वामी, बहादुर,योद्धा आदि होता है। व्यक्ति के उपरोक्त गुणों एवमकार्यों के आधार पर कालांतर मैं उपाधि के रूप मैं नायक की उपाधि दी जाती रही है, धीरे-धीरे इसी उपाधि से उस व्यक्ति का वंश जाना जाने लगता है, और बाद मैं एक जाती के रूप मैं पहचानने लगे। इस प्रकार नायक जाती के पूर्वजों द्धारा किये गए बहादुरी और साहस के कार्यों फल है की आज हम “नायक” कहलाते हैं,. यह हमारे लिए गर्व की बात है. राजा महाराजाओं के सेना मैं नायक जाती के व्यक्तियों का महत्वपूर्ण है, इनकी लड़ाका शक्ति के कारण ही इनकों सैनिक टुकड़ी का मुखिया बनाया जाता था। भारतीय सेना मैं भी नायक एक पद है जो उसके अधीन सैनिक टुकड़ी का अधिकारी होता है।नायक योधाओं की बहादुरी के कारनामों से इतिहास भरा पड़ा है. सैनिक टुकड़ी के मौखिया , किलो के रक्षक, गढ़ों के रक्षक, मुख्य द्वारों के द्वारपाल जैसे महत्वपूर्ण पदों पर नायक लगाये जाते थे.नागौर शहर मैं परकोटे के द्वार पर नायक द्वारपाल थे, जिनके वंशज आज भी इन द्वारों (गैटों) पर सैकड़ों की सांख्या मैं बसे हुऐ हैं.राजस्थान के अलावा पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, मध्यप्रदेश, गुजरात, महारास्त्रा, गोआ, पांडीचेरी, कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश, उदिशा, केरला आदि राज्यों मैं नायक निवास करते हैं. राजस्थान केइतिहासकारों द्वारा लिखे गये ग्रंथो ऐवं कर्नल टोड द्वारा लिखित पुस्तक से यह जानकारी मिलती है की नायक ठिकानेदार भी थे, कुछ राजा महाराजाओं के अधीन तो कुछ स्वतंत्र थे. मेवाड़ मैं अनेक छोट्टे बड़े ठिकाने थे जो मेवाड़ राज्य के तीसरे नंबर के ठिकानेदार थे. मेवाड़ मैं बामनियाँ नायकों का मशहूर ठिकाना था, जहाँ का ठिकानेदार रूपा नायक था, जो बहुत प्रभावशाली था. अंग्रेज़ इतिहासकर कर्नल टोड ने अपनी पुस्तक मैं लिखा है की मेवाड़ से मारवाड़ के मध्य जब वो नायकों के एक गावों मैं ठहरे थे तो वहां का ठिकानेदार नायक बड़े रोबदार वाला, हिरण की खाल की बंधी पहने हुऐ धन सम्पन व्यक्ति था. शेरशाह सूरी ने जब जोधपुर पर हमला किया उस वक्त जोधपुर महाराजा राओ मालदेव के साथ लड़ने वाले वीरोँ मैं भीखू नायक और नाथा नायक भी वीरगति को प्राप्त हुऐ थे. खेतरीऔर लुहारू लड़ाई मैं जब लुहारू का नबाब जीत कर खेतरी शहर मैं अपनी दुहाई फिरा रहा था और बड़े गर्व से हाथी पर सवार था उस वक्त बक्श नायक ने अपनी बंदूक का निशाना बनाकर जीते हुऐ नबाब को मारदिया और शेखावतों की और से बदला लिया. बीकानेर महाराजा डूंगर सिंग के समय भद्रा के ठाकुर प्रतापसिंग कंधल का अंगरक्षक लाल जी नायक था, जिसकी टुकड़ी मैं १२० छ्टे हुऐ नायक वीर रहा करते थे, किन्तु एक बार भद्रा ठाकुर से मन मुटाव होने पर ठाकुर ने धोखे से लालजी नायक को मार दिया. इस प्रकार राजस्थान के लगभग सभी राजा, महाराजा, महाराणा, ठिकानो मैं नायक महत्वपूर्ण पदों पर थे.स्वाभिमानी और प्राकर्मी होने के कारण धीरे-धीरे अधिकांश जगह इनका आपस मैं मन मुताओ हो गया और नायकों के बढ़ते प्रभाव को राजवंशो की सेनाओं ने समाप्त करने के लिये संघर्ष किया जिससे नायकों के शक्तिशाली योधा या तो शाहीद हो गये या दोसरी जगह पलायन कर गये. राजस्थान से ही नायक दुश्मनी अवाम आर्थिक मजबूरी के कारण हरियाणा, पंजाब, दिल्ली, उत्तरप्रदेश, माद्ध्यप्रदेश, गुजरात आदि राज्यों मैं पलायन कर गये. पंजाब मैं कईयों ने सिखवेश धारण कर लिया, कहीं गोस्वामी बनकर मंदिरोंके पुजारी बन गये, तो कहीं बंजारा नाम से जाने लगे, तो कुछ साधु बनकर भिक्षावृति भी करने लगे. आर्थिक रूप से कमजोर होने और शिक्षा के अभाव एवं जागरूकता की कमी तथा अपने भोलेपन के कारण नायक जाती अन्य जातियों से पिछड़ती गई और किसी समय प्राकर्मी और संपन्न जाती धीरे धीरे समाज मैं एक निम्न जाती के रूप मैं पहचानी जाने लगी

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