Rana punja bhil history in Hindi - भारत के मुल निवासी

शनिवार, 25 जून 2022

Rana punja bhil history in Hindi

Rana punja bhil history

मेवाड़ राजस्थान के दक्षिण-मध्य में स्थित एक रियासत थी। इसे 'उदयपुर राज्य' ( 'चित्तौडगढ राज्य’ ) के नाम से भी जाना जाता है। इसमें आधुनिक भारत के उदयपुर, भीलवाड़ा, राजसमन्द, तथा चित्तौडगढ़, प्रतापगढ़ जिले थे। 
मेवाड़ के राजचिह्न में महाराणा प्रताप राजपूत और भील राणा पूंजा अंकित है ।

 सैकड़ों वर्षों तक यहाँ राजपूतों का शासन रहा और इस पर गहलोत तथा सिसोदिया राजाओं ने 1200 वर्ष तक राज किया , मेवाड़ शासकों का राजतिलक भील सरदार अपने अंगूठे के रक्त से करते थे, यह भील सरदार मुख्यतः ओगना और उंदेरी के होते थे। 

बाद में यह अंग्रेज़ों द्वारा शासित राज बना।

१५५० के आसपास मेवाड़ की राजधानी थी चित्तौड़। राणा प्रताप सिंह यहीं के राजा थे। अकबर की भारत विजय में केवल मेवाड़ के राणा प्रताप बाधक बना रहे। अकबर ने सन् 1576 से 1586 तक पूरी शक्ति के साथ मेवाड़ पर कई आक्रमण किए, पर उसका राणा प्रताप को अधीन करने का मनोरथ सिद्ध नहीं हुआ स्वयं अकबर, प्रताप की देश-भक्ति और दिलेरी से इतना प्रभावित हुआ कि प्रताप के मरने पर उसकी आँखों में आंसू भर आये। 
उसने स्वीकार किया कि विजय निश्चय ही राणा की हुई। 
यह एक ऐतिहासिक सत्य है कि देश के स्वतंत्रता संग्राम में प्रताप जैसे महान देशप्रेमियों के जीवन से ही प्रेरणा प्राप्त कर अनेक देशभक्त हँसते-हँसते बलिवेदी पर चढ़ गए। 
महाराणा प्रताप की मृत्यु पर उसके उत्तराधिकारी अमर सिंह ने मुगल सम्राट जहांगीर से सन् 1615 में संधि कर ली।

मेवाड़ का इतिहास बेहद ही गौरवशाली रहा है , मेवाड़ का प्राचीन नाम शिवी जनपद था । 
चित्तौड़ उस समय मेवाड़ का प्रमुख नगर था । प्राचीन समय में सिकंदर के आक्रमण भारत की तरफ बड़ रहे थे , उसने ग्रीक के मिन्नांडर को भारत पर आक्रमण करने के लिए भेजा , उस दौरान शिवी जनपद का शासन भील राजाओं के पास था । 
सिकंदर भारत को नहीं जीत पाया , उसके आक्रमण को शिवी जनपद के शासकों ने रोक दिया और सिकंदर की सेना को वापस जाना पड़ा ।

दरसअल मेवाड़ , भील राजाओं के शासन का क्षेत्र रहा , भीलों ने शासन करने के साथ साथ मेवाड़ धारा का विकास किया ।

मेवाड़ पर राजा खेरवो भील का शासन स्थापित था , उसी दौरान गुहिलोतो ने मेवाड़ अपने कब्जे में कर लिया 

मेवाड़ राज्य की स्थापना लगभग 530 ई। में हुई थी; बाद में यह भी होगा, और अंततः मुख्य रूप से, राजधानी के नाम पर उदयपुर कहलाएगा। 1568 में, अकबर ने मेवाड़ की राजधानी चित्तौड़गढ़ पर विजय प्राप्त की। 
1576 में, मेवाड़ के शासक महाराणा प्रताप ने अकबर को हराया और हल्दीघाटी के युद्ध के बाद मुगलों से मेवाड़ की खोई हुई सभी भूमि को ले लिया। हालांकि, गुरिल्ला युद्ध के माध्यम से, महाराणा प्रताप ने पश्चिमी मेवाड़ पर कब्जा कर लिया। 
1606 में, अमर सिंह ने देवरे की लड़ाई में मुगलों को हराया। 
1615 में, चार दशक तक झड़प के बाद, Mewar और मुगलों ने एक संधि में प्रवेश किया, जिसके तहत मुगलों के कब्जे के लिए मेवाड़ के कब्जे के लिए मेवाड़ क्षेत्र को वापस कर दिया गया था और मुगल दरबार में भाग लेलेया जब 1949 में उदयपुर राज्य भारतीय संघ में शामिल हो गया, तो उस पर 1,400 वर्षों से मोरी, गुहिलोट और सिसोदिया राजवंशों के राजपूतों का शासन था। चित्तौड़गढ़ सिसोदिया वंशावली ओ की राजधानी थी ।

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