➡ सन 1857 की क्रान्ति के दौर के वीर क्रांतिकारी, एक महान योद्धा, सतपुड़ा की सुदूर पहाड़ियों में रहने वाले निमाड़ के आदिवासी वीर योद्धा रहे बिरजू नायक जिनकी कहानी से बहुत ही कम लोग वाकिफ है, अंग्रेज शासनकाल मे कई क्रांतिकारी योद्धाओं ने अपना बलिदान दिया। उनमे से कई वीर एसे भी है जिनका जिक्र इतिहास में एक लाइन से ज्यादा नहीं किया गया है।एसे ही आदिवासी वीर योद्धा रहे बिरजू नायक, जिनका शहीदी दिवस 2 मई है।
➡मध्य प्रदेश के बड़वानी जिले की राजपुर तहसील के नगर पलसूद के निकट ग्राम मटली एवं सावरदा के बीच स्थित एक पहाड़ी पर स्थित क्षेत्र की प्रशिद्ध "बांडी हवेली" है जो वीर बिरजू नायक का कर्मघर है, जो आज भी मौजूद है हालांकि वह अब खंडहर में तब्दील हो चूका है, जिसको संरक्षित करने की आवश्यकता है। स्थानीय सगाजनो/समाजजनो से प्राप्त जानकारी अनुसार ऐसी मान्यता है कि वीर बिरजू नायक इसी बांडी हवेली से अपने साथियों के साथ अंग्रेजो के विरुद्ध अपनी योजनाए बनाकर उन्हें अंजाम देते थे। वही पलसूद के नजदीक ग्राम उपला में इनका समाधिस्थल है, जहा वर्तमान में भी क्षेत्र के समाजजन/सगाजन पहुचकर वीर योद्धा को श्रद्धांजलि सुमन अर्पित करते है, वही समस्त मूलनिवासी संगठनों द्वारा प्रतिवर्ष 2 मई को वीर बिरजू नायक का शहीदी दिवस भी मनाया जाता है।
➡हमारे पूर्वजो एंव वरिष्टमहानुभवों से प्राप्त जानकारी अनुसार बिरजू नायक हमेशा गरीब व किसान के हितों के लिए लड़ते थे ।वीर योद्धा भीमा नायक , खज्या नायक और टंट्या मामा भील के साथ कई विद्रोह में सहभागिता की । वे अक्सर अंग्रेजो को लूटकर सामग्री गरीबों में बाट दिया करते थे । उन्होंने अंग्रेजों से कई लड़ाई लड़कर उन्हें धूल चटा दी थी, कहा जाता है कि जब भी गांव में अंग्रेज आते थे अंग्रेजों को गांव से मारकर भागने पर मजबूर कर देते थे ।
➡उलेखनीय है कि स्वतंत्रता सेनानी तात्या टोपे के पश्चिम निमाड़ के आगमन पर राजपुर क्षेत्र के गुप्त रास्तो से नर्मदा नदी पार करवा कर मंजिल तक पहुचाने में भीमा नायक, खाज्या नायक एवं बिरजू नायक तथा साथियो का अहम योगदान था , इसी योगदान के बदले उन्हें "वीर की उपाधि" दी गई थी। जिससे पता चलता है कि सिंधी घाटी क्षेत्र में वीर के नाम से चर्चित थे, आज भी उनके नाम के आगे लोग वीर लिखना नही भूलते है। निवाली से (सिंधी घाटी)राजपुर तक उनका गढ़ रहा है। ग्राम मटली में स्थित झरने (कुंडी) पर नहाने जाया करते थे, उन्हें धोखे के तहत रणनीति बनाकर मारने के लिए अंग्रेजों ने करीबी साथी का सहारा लिया, क्योंकि बिरजू नायक को मारना आसान नहीं था अंग्रेजों ने उन्हें मारने के लिए कई प्रयास किए पर असफल रहे । वे युद्ध कला में निपुण थे, बिरजू नायक प्रतिदिन की तरह एक बार झरने (कुण्डी) पर नहाने पहुचे थे तभी अंग्रेजो द्वारा भेजे गए किसी परिचित ने उनका सर धड़ से अलग कर दिया। ऐसा बताया जाता है कि सर धड़ से अलग होने के बावजूद वे उपला स्थित समाधी स्थल तक दौड़ते हुए आ गए थे व उक्त स्थल पर प्राण त्यागे थे।आदिवासी समाज एवं विभिन्न संगठनों के कार्यकर्ता वर्तमान में भी उनकी गाथा का गायन करते है।
➡ "यहाँ से साथियो से करते थे सूचनाओ का आदान प्रदान।"
कहा जाता है कि वीर बिरजू नायक अपने साथियों को सुचना देने हेतु वाद्य यंत्र का उपयोग करते थे। जिस स्थान से सूचनाओं का आदान प्रदान करते थे उस स्थान को अब ढोला बैड़ी के नाम से जाना जाता है, जो कि ग्राम मटली में स्थित है।
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सुदूर पहाड़ियों एंव सिंधीघाटी क्षेत्र से अंग्रेज शासनकाल में अंग्रेजो के खिलाफ हक-अधिकार की आवाज़ को बुलंद करने वाले निमाड़ के शेर आदिवासी क्रांतिकारी शहीद वीर #बिरजू_नायक के शहादत दिवस पर उन्हें शत शत नमन करता हु।
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