तेजा भील का इतिहास - भारत के मुल निवासी

रविवार, 16 मई 2021

तेजा भील का इतिहास

"हमारी जमीन, हमारी ऊपज के हम "मूल मालिक" हैं!"
~तेजा भील

महान स्वतंत्रता सेनानी, आदिवासी क्रांतिकारी, अप्रतीम शौर्य, निडरता और बलिदान की प्रतिमूर्ति, वीर योद्धा, तेजा भील जी की जयंती पर शत् शत् नमन🌼🙏🏼
सिरोही नरंसहार में शहीद 1200 महान भील स्वतंत्रता सेनानियों को शत् शत् नमन🌼🙏🏼


तेजा भील 16 मई 1896 को उदयपुर, राजस्थान के पास बीलोलिया गांव में जन्मे। सिद्ध हत्याकांड तेजा भील के नाम से मशहूर है। 1917 में आदिवासी भीलो के साथ अन्याय हो रहा था। यह काम अंग्रेजों और जमीदार द्वारा किया जा रहा था लेकिन मुआवजा नहीं दिया जा रहा था इसलिए आदिवासी भील समुदाय भूखा था। तो 1920 में आदिवासी किसान, मजदूर, श्रमिकों को मातृकुंडिया बुलाया गया और वहां मेवाड़, सिरोही, डूंगरपुर, ईडर, उदयपुर के लोग भारी संख्या में इकट्ठा हुए और आंदोलन की चिंगारी हुई। जो मकान मालिक काम का भुगतान नहीं करेगा, उसने ठान लिया है कि उसे काम नहीं करना है। आदिवासी समुदाय ने मकान मालिक पर असहयोगी आंदोलन शुरू किया यही कारण है कि काम बंद हो गया। मकान मालिकों ने ब्रिटिश अधिकारियों से शिकायत की। मकान मालिक ने कहा कि उनके पूर्वज तेजा भील है तो उनके खिलाफ मुकदमा दर्ज किया जाना चाहिए। 

तेजा भील को पकड़ने के लिए इंगस ने सेना बनाई और तेजा भील को पकड़ने गए तो भाग गए और अंग्रेज तेजा भील के बारे में पूछने गांव गांव गए और लोगों पर अत्याचार किया अगर लोगों ने नहीं बताया तो वैसे ही आदिवासीयो की कृषि को काफी हद तक नुकसान होने लगा। तेजा भील को ये पता चल गया, उस पर तेजा ने कहा था अंग्रेजो पर टैक्स देना बंद करो। लोगों ने अंग्रेजों पर टैक्स देना बंद कर दिया। जब उन्होंने यह कहा बिजोलिया किसान आंदोलन 1921 में खड़ा हुआ। उस माध्यम से गुजरात, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में आदिवासी एक होने लगे। अंग्रेजों को टैक्स देना बंद करने की खबर गांव गांव में हवा की तरह फैल गई। उस में हमारी जमीन, हमारी उपज के नारे के साथ जब आप "मूल मालिक" हैं तो अंग्रेजों और जमींदारों के दबाव के शिकार नहीं होना चाहिए। तेजा भील ने जनता को संदेश दिया कि हम उनका विरोध कर अपने देश से निकालना चाहते हैं। तभी तो अंग्रेज गुस्से में आ गए। सिरोही के दिवान रमाकांत मालविन 6 मई 1922 को तेजा भील से मिलने गए थे। अंग्रेजो ने बोलोलिया और भुला के आदिवासी गावों पर हमला कर झोपड़ी जला दी। जिससे आदिवासीयों को बहुत बड़ा नुकसान हुआ। उसका बदला लेने के लिए उदयपुर कैंप में चलकर अंग्रेजो के सारे खजाने लूट लिए और आदिवासीयों को वितरण किया। 

14 मई 1922 को सिरोही में आदिवासी समुदाय की बड़ी बैठक शुरू की गई। अंग्रेजो को उसकी जानकारी मिली और अंग्रेजो ने सिरोही पर हमला किया दोनों पक्षों को बड़ी क्षति हुई। कई क्रांतिकारी और ब्रिटिश सैनिक मारे गए जिसे "सिरोही नरसंहार" कहा जाता है। इसका बदला लेने के लिए अन्याय और उत्पीड़न एक साथ आये जिससे आजादी और जल जंगल जमीन के लिए सबको एक करके भील का आंदोलन शुरू हुआ। इसका असर राजस्थान के अलावा गुजरात और महाराष्ट्र में भी हो रहा है। इस जांदोलन में टैक्स नहीं देंगे और मजदूरी नहीं करेंगे का नारा दिया गया। सदर का पहला आंदोलन निमड़ी गुजरात में भारी संख्या में उमड़े आदिवासी ब्रिटिश कैंपों पर आदिवासी टूटने लगे। ब्रिटिश सैनिक साईरवैरा दौड़ने लगे। कुछ नौकरियां छोड़ कर घर भागे। तेजा भील दूसरे राज्यों के अधिकारियों से बात कर रही थी ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा उन्हें व्यवस्थित करने के लिए। तेजा भील रियासत जहागीदार से तालमेल बिठाकर अंग्रेज सैनिक गोलियां बरसाने लगे। इसमें 1200 आदिवासी भील मारे गए। कुछ आदिवासी क्रांतिकारी तेजा भील को उस जगह से गुमनाम जगह ले गए। उन्होंने उसे 18 साल के लिए गुमनाम रखा।

जोहार
जय भील आदिवासी

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