Bhagoria festival history in hindi - भारत के मुल निवासी

गुरुवार, 17 मार्च 2022

Bhagoria festival history in hindi

Orijnal trible culchar jhabua

भगोरिया /भोंगरिया/भोंगर्या हाट / फाग उत्सव ।


1.झाबुआ का महा सांस्कृतिक पर्व भगोरिया .....

पश्चिमी निमाड़,झाबुआ और आलीराजपुर में देश-विदेश में प्रसिद्ध लोक संस्कृति का पर्व भगोरिया बड़ी धूम धाम से मनाया जाता है। हाेली के 7 दिन पहले से मनाए जाने वाले इस पर्व में पूरा वनांचल उत्सव आंनद में सरोबार रहता है ।होली के पहले भगोरिया के सात दिन ग्रामीण खुलकर अपनी जिंदगी जीते हैं। देश के किसी भी कोने में ग्रामीण आदिवासी मजदूरी करने गया हो लेकिन भगोरिया के वक्त वह अपने घर लौट आता है। इस बात से यह समझ आता है कि का जन अपनी जमी माता से कितना जुड़ाव रखता है इस दौरान रोजाना लगने वाले मेलों में वह अपने परिवार के साथ सम्मिलित होता है। भगोरिया की तैयारियां पूरा समाज महीनेभर पहले से ही शुरू कर देते हैं। दिवाली के समय तो शहरी लोग ही शगुन के बतौर सोने-चांदी के जेवरात व अन्य सामान खरीदते हैं लेकिन भगोरिया के सात दिन ग्रामीण अपने मौज-शौक के लिए खरीददारी करते हैं। लिहाजा व्यापारियों को भगोरिया उत्सव का बेसब्री से इंतजार रहता है। ग्रामीण खरीददारी के दौरान मोलभाव नहीं करते, जिससे व्यापारियों को खासा मुनाफा होता है।
ऐसी मान्यता है कि भगोरिया की शुरुआत राजा भोज के समय से हुई थी। उस समय दो भील राजाओं कासूमार औऱ बालून ने अपनी राजधानी भगोर में मेले का आयोजन करना शुरू किया। धीरे-धीरे आस-पास के भील राजाओं ने भी इन्हीं का अनुसरण करना शुरू किया, जिससे हाट और मेलों को भगोरिया कहने का चलन बन गया। हालांकि, इस बारे में लोग एकमत नहीं हैं।युवकों की अलग-अलग टोलियां सुबह से ही बांसुरी-ढोल-मांदल बजाते मेले में घूमते हैं। वहीं, आदिवासी लड़कियां हाथों में टैटू गुदवाती हैं।


 2.भूमिका......
भगोरिया हाट लाखों सालों से चली आ रही है भीलो की सांस्कृतिक,पारंपरिक ,सामाजिक,रीति रिवाज, परंपरा/धरोहर है।
भगोरिया उत्सव की साल भर से सभी गणमान्य लोगों को बेसब्री इंतजार रहता है।
भगोरिया नये साल के आगमन की मस्ती,
 प्रकृति भी अपना रंग बिरंगे पलाश फूल,
आम का मौर, खुशी से फागण के बाद चैत्र का इंतजार ।भंगुर्यु हाट एक उत्सव, पलाश के इन खुबसूरत फुलों के साथ होली दुलेड़ी,गल बाबा,सुल जैसे अनेकों आयोजन होते हैं

3. सामाजिक , सांस्कृतिक महत्व ....
प्राय: झाबुआ व इसके आसपास अलीराजपुर बड़वानी धार महाराष्ट्र गुजरात के कुल 150 से ज्यादा स्थानों पर मनाया जाता है झाबुआ के आस-पास का समाज हमेशा से प्रकृति से जुड़ा रहा होगा ।यहां की उत्तम परंपराएं व रिती रिवाज जिन को जानने समझने की जरूरत है ऐसा ही यह भगोरिया हाट है पूरे 7 दिनों तक अलग-अलग स्थानों पर मनाया जाता है ।
        भगोरिया में जाकर होली ,घर व अपनी जरूरत की वस्तुओं ,सामान खरीदते हैं यहां का समाज अपनी संस्कृति व अपने रीति रिवाज के साथ एक प्रकार से साल भर में फिर से जीवंत हो उठता है अपनी पहचान पारंपरिक वेशभूषा, बांसुरी, तीर कमान, पागड़ी,ढोल मांदल की थाप पर थिरकना एवं खुशी व हर्षोल्लास के साथ भगोरिया में शामिल होते है एवं फागुन का महीना होता है नए साल का आगमन होता है प्रकृति भी उस समय अपना रूप रंग बदलती है महुए के नए फूल आते हैं पलाश अपने रंग बिरंगे फूल बिखेरते है आम में मोर आता है अतः हम झाबुआ भी इस नए साल का खुशी कुछ इस तरह 8 दिनों तक मनाते हैं एवं इस अंचल में होली का त्योहार 8 दिनों तक मनाया जाता है सातवें दिन होली होती है एवं आठवें दिन गल बाबजी का त्योहार होता है ।
    जानकार बताते हैं कि बहुत समय पहले देश व दुनिया मे संचार का अर्थात किसी से बातचीत का कोई ऐसा माध्यम नहीं हुआ करता था जैसे आज टेलीफोन व मोबाइल है उस समय यहां पर समाज ने एक व्यवस्था सप्ताह में हाट लगाना शुरू किया बाजार में अपना जरूरी सामान खरीदना एवं आसपास के सभी गांव के लोग उसमें शामिल होते थे यह एक दूसरे की गांव की जानकारी सगा संबंधी की जानकारी एवं सूचना मिल जाती थी अर्थात सूचना का एक बहुत बड़ा केंद्र हॉट उस समय हुआ करता था यह प्रत्येक 7 दिन में लगता है।

4.भगोरिया पर्व का इतिहास ।।।
भोंगर्या राजा भोज के समय लगने वाले हाटों को कहा जाता था। इस समय दो भील राजाओं राजा कसुमर औऱ बालून ने अपनी राजधानी भागोर में विशाल मेले औऱ हाट का आयोजन करना शुरू किया। धीरे-धीरे आस-पास के भील राजाओं ने भी इन्हीं का अनुसरण करना शुरू किया जिससे हाट और मेलों को भोंगर्या कहना शुरू हुआ। प्राचीन समय में आवागमन के साधन कम होने के कारण एक दिन बैलगाड़ी से पूरे परिवार के सदस्य आते हैं और अपने रिश्तेदारों से मिलते है। आदिवासी समाज में होली का डांडा गाड़ने के जबाद कोई भी मांगलिक कार्य नही होता है।

5.भगोरिया और झाबुआ का जनमानस
भगोरिया' एक हाट बाजार मात्र है जिसमें होलीसे पूर्व पूजन सामग्री खरीदने के लिए जाते है भगोरिया मेला राजा कसुमर और बालुन के समय अस्तित्व। में आया ।, यह मध्य प्रदेश के मालवा अंचल (धार, झाबुआ,अलीराजपुर खरगोन, बड़वानी आदि) के आदिवासी इलाकों में बेहद धूमधाम से मनाया जाता है। भगोरिया के समय धार, झाबुआ, खरगोन आदि क्षेत्रों के हाट-बाजार मेले का रूप ले लेते हैं और हर तरफ फागुन और प्यार का रंग बिखरा नजर आता है।

भोंगर्या हाट-बाजारों में युवक-युवती बेहद सजधज कर अपने अभिभावक के साथ होली की खरीदी करने आते हैं। साथ ही गणगोर के बाद होने वाली शादियों के लिए साज-श्रृंगार की वस्तुएं लेने भोगर्या हाट में आते है। जब होली का डंडा गढ़ जाता है तब से मांगलिक कार्य बन्द कर देते हैं

भोंगर्या हॉट को लेकर समाज में कई प्रकार के भ्रम फैले हुए हैं । वह चाहे आदिवासी समाज की बात हो या गैर आदिवासी समाज की बात हो कोई भी व्यक्ति इसके तह तक जाना नहीं चाहता है ।
जबकि भोंगर्या हाट होलिका पूजन की सामग्री खरीदने का हॉट है । जिसमें सभी समाज के लोग भी होलिका पूजन की सामग्री खरीदते हैं। 
 इसे कुछ समय पहले तक आदिवासियों के वैलेंटाइन डे, प्रणय पर्व आदि नाम देकर दुष्प्रचारित किया जा रहा था। किंतु पिछले 10-12 वर्षों से समाज के जागरूक कार्यकर्ताओं द्वारा इस दुष्प्रचार के खिलाफ एवं समाज में जागरूकता को लेकर लगातार कार्य किया गया । पंपलेट छपवाकर बांटे गए, जगह- जगह पर सभाएं एवं मीटिंग का आयोजन कर, प्रेस वार्ताओं का आयोजन कर, इलेक्ट्रॉनिक एवं प्रिंट मीडिया के रिपोर्टरों से बहस,शासन-प्रशासन,सुचना प्रसारण मंत्रालय से पत्राचार आदि के माध्यम से समाज में जागृति लाए एवं इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया तथा शासन प्रशासन से भोंगर्या हाट की सच्चाई को लेकर तथ्य सामने लाएं

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