मीनाक्षी मन्दिर का परिमाण 28 जून 1963 को सदुराई इतिहास प्रसिद्ध मीनाक्षी के मन्दिर में कुम्मा श्षिकम समारोह के अवसर पर दशनार्थ आए हुए तीर्थ यात्रियों की भीड़ के कारण मदुराई नगर की जनसंख्या 40 लाख से दुगनी थी जो लगभग 90 लाख थी ।
अन्य वर्गो के यात्री थे जो मीनाक्षी के दर्शनार्थ थे , और मीनाक्षी मन्दिर भारत में विशाल ऊंचे मन्दिरों में से है , इसकी स्थापना का समय ततीया शताब्दी पूर्व बताया है , जिसे अनुमाननीय आज 1968 ई . तक कुल वर्ष 226A हुए है ।
द्राविड़ सभ्यता एवं सांस्कतिक परम्परागत पीठ मदुराई में स्थापित मन्दिर की आयताकार दिवारें 874 फुट लम्बी और 792 फुट चौड़ी है , यह पांडवों द्वारा बनाया हुआ है ।
प्राचीन मन्दिर को मलिक काफूर ने दक्षिणी को पदाक्रान्त करते समय सन् 1310 में भूमिसात कर दिया । और 1560 में नायक वंश राजाओं ने मन्दिर को इस के सम्पूर्ण वैभव सहित पुनः निमत कराया मन्दिर के पुनः निर्माण के लिये 2000000 ( बिस लाख ) रूपया इक्कठा करने के लिए राजा , सरदार , घनी , व्यापारियों ने परस्पर स्पष्टी की इस मन्दिर में यद्यपि समय - समय पर थोड़ी बहुत मरम्मत होती रही है ।
तथापि हाल ही में सम्पन नवीनकरण सम्भवतः इसे एक नूतन मन्दिर का रूप देने का महान प्रयास हुआ । यह नवीनकरण 1960 ई . में शुरू किया गया था इस में बीस लाख रूपया व्यय हुआ , और तीन साल तक इसमें कुशल शिल्पों तथा कलाकारों ने काम किया । इस मन्दिर के 16 गोपुरम की मरम्मत की ।
इनमें से दो की उंचाई 160 फुट से अधिक है जिनमें अनेक लघु प्रतिमाएं ईटों और विशेष प्रकार के पत्थरों से बनाया गया है । त्मीलनाड़ी के संसार को और मन्दिर में इन्जीनियर की शिल्प कुशलता का परिचय वहां की कला कतियो वनास्पति पते और पत्थर मिश्रण आदि देखा जाता है ।
इन मन्दिरों के अधीन विकर्ण में बहुत अधिक व्यय होने की सम्भावना से अभी तक ध्यान नहीं दिया गया । यहां तक कि रामेश्वर के गिरते हुए प्रसिद्ध ही ध्यान दिया । मन्दिर की न प्रांतीय सरकार ने और न केन्द्रीय सरकार के पुरात्व विभाग ने मीनाक्षी में केवल प्रशिक्षित कलाकारों द्वारा नवीनकर्ण का कार्य सम्पन्न अलग - अलग लिये गये । हुआ . पहले प्रतिमाओं के फोटू एक साथ , यहां कहीं आवश्यक समझा गया , वह विशेष प्रकार के रंगों का प्रलेप सूर्य की भान्ति किरणों और वर्षा से बचाने के लिए किया , परन्तु फिर भी यह मदुराई . तरूथी , तन्जोर आदि के नायक
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