इसलिए कहते हैं कि हर तहसील में आदिवासी हॉस्टल होना चाहिए लेकिन ना तो हमारे समाज के लोगो को पड़ी है और ना ही सरकार में बैठे हमारे नेताओ को, लेकिन आदिवासियों बोलने में, अपने समाज के लिए कुछ करने में बहुत शर्म आती है
11 साल की आदिवासी बच्ची रांची
11 साल की आदिवासी बच्ची रांची |
लकड़ियाँ बेचकर अपनी जीविका चलाती 11 साल की आदिवासी बच्ची रांची / सोंबरी साबर 11 साल की आदिवासी बच्ची है। उसके माता-पिता गुजर रहे हैं, वह लकड़ियां बेचकर अपनी रोजी-रोटी चलाती है और स्कूल भी जाती है अस्ताकली अपग्रेडेड मि'डिल स्कूल के टीचर अनिल राय सोंबरी की तारीफ करते नहीं थकते। उन्होंने बताया, 'सोंबरी जादू की पुड़िया जैसी है। जब वह बहुत छोटी थी तब टीबी की वजह से उसकी मां की मौत हो गई थी। अभी एक महीने पहले उसके पिता का भी निधन हो गया। उसकी कोई भी राहत मदद करने के लिए आगे नहीं आई। अब वह इंदिरा आवास योजना के तहत दिए गए जर्जर मकान में किराए पर रहता है। सोंबरी पाँचवीं कक्षा में पढ़ती है और हर रोज़ स्कूल जाती सोंबरी के बारे में पता चलने पर कई एनजीओ और प्राथमिक संस्थाओं ने उसकी मदद के लिए हाथ बढ़ाया है। टाटा स्टील ऐंड आनंद मार्ग आश्रम उसे एडॉप्ट करना चाहता है।
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डुमरिया ब्लॉक के डिवेलपमेंट ऑफिसर मृत्युंजय कुमार ने कहा, ' सिंडिकेट बैंक के एक बैंकर और एक शिक्षक दंपति ने भी सोंबरी को अडॉप्ट करने के लिए अर्जी दी है। ' उन्होंने बताया कि सभी ऐप्लीकेशन्स जिला प्रशासन को सौंपे गए हैं।
सोंबरी कहती है कि वह पढ़ाई करके अपने पिता का सपना पूरा कर रही है।अस्ताकवाली झारखंड के पूर्वी सिंहभूम जिले में है जोकि माओवाद प्रभावित इलाका है। उसके घर में ना ही बिजली है और ना ही वह केरोसीन ऑइल खरीद सकती है। अभी वह अपने पिता की मृत्यु के बाद श्राद्ध के कामों में व्यस्त है। सोंबरी ने बताया कि अभी वह जंगल से जलाने की लकड़ियां और साल के साल के पत्ते इकट्ठे कर रही है।
सोंबरी कहती है कि वह पढ़ाई करके अपने पिता का सपना पूरा कर रही है।अस्ताकवाली झारखंड के पूर्वी सिंहभूम जिले में है जोकि माओवाद प्रभावित इलाका है। उसके घर में ना ही बिजली है और ना ही वह केरोसीन ऑइल खरीद सकती है। अभी वह अपने पिता की मृत्यु के बाद श्राद्ध के कामों में व्यस्त है। सोंबरी ने बताया कि अभी वह जंगल से जलाने की लकड़ियां और साल के साल के पत्ते इकट्ठे कर रही है।
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